श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ३२
Chaupai 32 Analysis![]()
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥ ३२ ॥
| राम रसायन तुम्हरे पासा | ||
| राम रसायन | = | राम रूपी अमृत |
| तुम्हरे पासा | = | आपके पास (है) |
| सदा रहो रघुपति के दासा | ||
| सदा रहो | = | सदा बने रहो |
| रघुपति के दासा | = | रामजी के दास |
![]()
भावार्थ
(हे पवनपुत्र) आपके पास राम रूपी अमृत है । सदा सदा के लिये आप रामजी के दास बने रहें ।
व्याख्या

रामकथा में जब से हनुमानजी का श्रीराम से मिलन होता है, तब से वे छाया की तरह रामजी के साथ रहते हैं, उनके काज संवारते हैं व उन्हें निश्चिन्त रखते हैं । रामकथा में हनुमानजी सर्वत्र (सभी जगह) हैं । राघवेन्द्र के राजतिलक के बाद रामजी की पादपीठ के पास ही महावीर का आसन बन गया । वे सीताराममय बन गये । तुलसीदासजी उनसे निवेदन करते हैं कि हे महावीर ! अमृत की सृष्टि करने वाले स्वामी स्वयं आपकी सेवा ग्रहण करते हैं । आप सीताराममय हैं और इसीलिए हे प्रभो ! आप अमृतमय हैं । आपके पास रामरूपी रसायन है अर्थात् अमृत है । मेरी तो यह कामना है कि आप नित्य ही रघुवीरजी के दास बने रहें तथा मुझे और भक्तजनों को रघुपतिजी के चरणों की सेवा करते हुए आपकी मंगल झांकी के दर्शन सदा होते रहें । रघुनाथजी के दर्शन, रघुनाथजी का कीर्तन, उनका गुण-गायन यह सब ही तो राम रसायन है । गोस्वामी तुलसीदास अपने सहायक और आराध्य बजरंग बली से निवेदन करते हैं कि आप भक्तों से सदा रघुनाथजी का मिलन कराते रहें । कपिवर केसरी कुमार रामजी को अतिशय प्रिय हैं, इसलिये वे रामदुलारे, रामप्यारे आदि प्रेमपरक नामों से भी पुकारे जाते हैं ।
| चौपाई ३१ | अनुक्रमणिका | चौपाइ ३३ |
![]()