श्रीरामरक्षास्तोत्रम्

श्लोक १४

Shloka 14

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्
वज्रपंजरनामेदं वज्रपंजर + नाम + इदम्
वज्रपंजर = वज्रपंजर (यह कवच का नाम है)
नाम = नामक
इदम् = इस (को)
यो (य:) = जो
रामकवचम् = राम की शक्ति से युक्त कवच को
स्मरेत् = याद करता है, ध्यान में लाता है
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्
अव्याहताज्ञ: अव्याहत + आज्ञ:
अव्याहत = अप्रतिहत / अबाधित
आज्ञ: = आज्ञा वाला (मनुष्य)
सर्वत्र = प्रत्येक स्थान में
लभते = पाता है
जयमंगलम् = विजय व मंगल

अन्वय

वज्रपंजर नाम इदम् रामकवचं य: स्मरेत् (स:) सर्वत्र: अव्याहताज्ञ: जयमंगलम् लभते ।

भावार्थ

राम की शक्ति से युक्त वज्रपंजर नामक इस रामकवच का जो सुमिरन करता है, वह मनुष्य सर्वत्र अबाधित आज्ञा वाला होता है अर्थात् उसकी आज्ञा का कहीं बाध अथवा उल्लंघन नहीं होता और वह विजय व मंगल प्राप्त करता है ।

व्याख्या

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के चौदहवें श्लोक में इस रामकवच के स्मरण की महिमा पर प्रकाश डाला गया है । पिछले श्लोक में इसे कण्ठस्थ करने का फल बताया है । अब आगे इस कण्ठस्थ किये गये रामकवच के सुमिरन से पाठकर्ता के जीवन में लक्षित होनेवाले प्रभावों को रेखांकित किया है ।

 

इस रामकवच को वज्रपंजर के नाम से जाना जाता है । वज्रपंजर नामक रामकवच राम की शक्ति से युक्त है । श्लोक में यह आशय निहित है कि जिसने इसे अपना कण्ठहार बना लिया, उसका जीवन धन्य है । कण्ठहार का केवल अभिधार्थ ( शाब्दिक अर्थ ) न लिया जाये । इसका तात्पर्यहै कि इस रामकवच का जो भी स्मरण करेगा, उसका प्रभाव  चारों दिशाओं में मान्य होगा । शब्दकोश के अनुसार स्मरणम् शब्द से मुख्यत: ये अर्थ निष्पन्न होते हैं — याद, स्मरणशक्ति,  चिन्तन करना और किसी देवता के नाम का मन में जाप करना इत्यादि । इस प्रकार यह कह सकते हैं कि वज्रपंजर नामक रामकवच को याद करने से, मन ही मन जाप करने से अथवा अन्य किसी प्रकार से इसका पाठ या अभ्यास करने वाला मनुष्य इस कृपा का पात्र बनता है कि उसकी अनुज्ञा अथवा आज्ञा सर्वत्र अप्रतिरुद्ध रहती है अर्थात् उसकी आज्ञा का कहीं अवरोध नहीं होता, उल्लंघन नहीं होता । अव्याहताज्ञ: का अर्थ है, जिसकी आज्ञा व्याहत अथवा बाधित नहीं होती ।    रामकवचपाठी मनुष्य के आदेश साध्वसवश सहज ही  शिरोधार्य होते हैं । उसका दमन कोई नहीं कर सकता, वह जय का भागी बनता है एवं जीवन में मंगल का, शुभत्व का उस अभ्यासी को सुखद दान मिलता है ।
श्लोक १३ अनुक्रमणिका श्लोक १५

Separator-fancy

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *