श्रीरामरक्षास्तोत्रम्

श्लोक १५

Shloka 15

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखित्वान्प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:
आदिष्टवान् = आदेश दिया
यथा = जैसा
स्वप्ने = सपने में
रामरक्षामिमाम् रामरक्षाम् + इमाम्
रामरक्षाम् = रामरक्षा को
इमाम् = इस (रामरक्षा) को
हर: = शिवजी ने
तथा लिखित्वान्प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:
तथा = वैसा ही
लिखित्वान्प्रात: लिखित्वान् + प्रात:
लिखित्वान् = लिख दिया
प्रात: = प्रभात की बेला में
प्रबुद्ध: = जागने पर
बुधकौशिक: = बुधकौशिक मुनि (विश्वामित्र मुनि) ने

अन्वय

हर: स्वप्ने इमाम् रामरक्षाम् यथा आदिष्टवान् तथा प्रात: प्रबुद्ध: बुधकौशिक: लिखित्वान् ।

भावार्थ

शिवजी ने रात को स्वप्न में इस रामरक्षा (स्तोत्र) का जैसा आदेश दिया अथवा इस स्तोत्र को जैसा बताया, वैसा ही प्रभात वेला में जाग कर बुधकौशिक मुनि ने इसे लिख दिया ।

व्याख्या

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् पंद्रहवें श्लोक में बताया गया है कि यह रामरक्षा स्तोत्र किस प्रकार प्रकट हुआ । ध्यातव्य है कि यह स्तोत्र बुधकौशिक मुनि द्वारा केवल लिख गया है, रचा नहीं गया । वे इस स्तोत्र के प्रणेता नहीं है, वे लेखक मात्र हैं । रात्रिकाल में भगवान शिव ने उनके स्वप्न मे आ कर यह रामरक्षा स्तोत्र उन्हें सिखाया व इसे लिखने का आदेश कौशिक ऋषि को दिया । कौशिक तथा बुधकौशिक नाम वस्तुत: महर्षि विश्वामित्र का है । कुश अथवा कुशिक नामक क्षत्रिय वंश में राजा गाधि के घर में उत्पन्न होने के कारण वे कौशिक कहलाये तथा बाद में अति उग्र तपस्या करने के बाद तेजस्वी गाधिपुत्र ने क्षत्रियत्व छोड़ कर ब्राह्मणत्व प्राप्त किया । ऋषि बने तथा आगे और भी उग्रतर तपस्या करके अन्त में उन्होंने ब्रह्मर्षि का पद पाया । विश्व में अब कोई उनका अमित्र न था । वे इस तरह विश्वामित्र के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुए । वे ही इस स्तोत्र के मन्त्रदृष्टा ऋषि हैं, जिनके स्वप्न में यह स्तोत्र प्रकट हुआ ।
प्रस्तुत श्लोक से ज्ञात होता है कि रात्रिकाल में मुनि के स्वप्न में भगवान श्रीशिव ने आकर रामरक्षा स्तोत्र उन्हें बताया, दूसरे शब्दों में कहें तो सिखाया । इस प्रकार से प्रकट हुए इस परम पवित्र स्तोत्र को शिवजी ने लिखने का आदेश मुनि को दिया । तत्पश्चात् प्रात:काल जब मुनि जाग गये, तब इस स्तोत्र को श्रीशंकर के आदेशानुसार उन्होंने लिख दिया । प्रबुद्ध का अर्थ है जगा हुआ । अतएव  जाग कर लिखने से ऋषि कौशिक को बुध  नाम मिला व वे बुधकौशिक कहलाये । वे ही परम तेजस्वी ब्रह्मर्षि विश्वामित्र रामजी के बल से सम्पन्न इस रामरक्षा स्तोत्र अथवा कवच को लिखने का पुण्य-यश अर्जित किया ।
श्लोक १४ अनुक्रमणिका श्लोक १६

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