श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
श्लोक १३
Shloka 13![]()
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥
| जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् | ||
| जगज्जैत्रैकमन्त्रेण | → | जगत् + जैत्र + एक + मन्त्रेण |
| जगत् | = | संसार, जग (को) |
| जैत्र | = | विजय करने वाले |
| एक | = | एक मात्र |
| मन्त्रेण | = | मन्त्र से |
| रामनामाभिरक्षितम् | → | राम + नाम्ना + अभिरक्षितम् |
| राम | = | राम (के) |
| नाम्ना | = | नाम से |
| अभिरक्षितम् | = | संरक्षित ( स्तोत्र ) को |
| य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: | ||
| य: | = | जो |
| कण्ठे | = | गले में |
| धारयेत्तस्य | → | धारयेत् + तस्य |
| धारयेत् | = | धारण करता है, कंठस्थ करता है |
| तस्य | = | उसके |
| करस्था: | → | कर + स्था: |
| कर | = | हाथ (में) |
| स्था: | = | स्थित होती हैं, रहती हैं |
| सर्वसिद्धय: | → | सर्व + सिद्धय: |
| सर्व | = | सब |
| सिद्धय: | = | सिद्धियां |
अन्वय
जगत् जैत्र एक मन्त्रेण रामनाम्ना अभिरक्षितम् (एतत् स्तोत्रं) कण्ठे य: धारयेत् सर्वसिद्धय: तस्य करस्था: ।
भावार्थ
संसार को विजय करने वाले एक मात्र मन्त्र रामनाम से, सब ओर से संरक्षित इस कवच को अपने कण्ठ में जो धारण करता है अर्थात् कंठस्थ करता है, उसके हाथ में सब सिद्धियाँ स्थित होती हैं अर्थात् उसे सब सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।
व्याख्या

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के तेरहवें श्लोक में रामनाम से संरक्षित कवच की महिमा का उद्घाटन किया गया है । यह स्तोत्र राम रक्षा कवच एवं रामरक्षा मन्त्र के नाम से भी जाना जाता है । इस श्लोक में सर्वप्रथम बताया है कि रामनाम इस मन्त्र में — अकेले ही इस मन्त्र में, पूरे जगत् को जीतने का सामर्थ्य है । इसीलिये रामनाम मन्त्र को जगज्जैत्रैक मन्त्र कहा, इसमें जगत् + जैत्र + एक ये तीन शब्द हैं, जगत् अर्थात् जग और जैत्र का अर्थ है जीत दिलाने वाला या जीतने वाला एवं एक से तात्पर्य है एकमात्र, अकेला । इस तरह पूरा अर्थ हुआ जग को विजय करने वाला एकमात्र मन्त्र । ऐसे अद्वितीय मन्त्र से यह रक्षा-कवच अभिरक्षित है । श्लोक में सीधा कवच शब्द नहीं दिया गया है, किन्तु तात्पर्य स्पष्ट है । श्लोक बताता है कि रामनाम मन्त्र द्वारा अभिरक्षित अर्थात् सब ओर से रक्षित इस कवच को जो पुरुष कण्ठ में धारण करेगा, उसे सब सिद्धियां सुलभ होंगीं । कण्ठ में इसे धारण करने से अभिप्राय है इसे कण्ठस्थ करना । रामनाम से रक्षित इस रक्षास्तोत्र को जो अभ्यासी कण्ठस्थ करेगा, उसे यह रक्षा-स्तोत्र अथवा कवच असाधारण क्षमताओं युक्त कर देगा । इसका अभ्यास अलौकिक शक्तियों का प्रदाता है । अति मानवीय शक्तियाँ अनायास साधक के करतलगत होंगी । रामरक्षा को कण्ठस्थ करने से सभी सिद्धियाँ साधक की हथेली पर होंगी — करस्था: का अर्थ है कर पर स्थित होना अथवा करतल पर होना, हथेली पर होना । सरल शब्दों में कहें तो सब सिद्धियां साधक को प्राप्त हो जाती हैं ।
सिद्धियां शास्त्रों में आठ प्रकार की वर्णित हैं, जिन्हें अष्टसिद्धि कहा जाता है । हनुमानजी को गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीहनुमान चालीसा में अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता कहा है । रामरक्षासुबोधिनी पुस्तक में विद्वान लेखक श्री नित्यानन्द मिश्र इन आठ सिद्धियों के नाम इस प्रकार बताते हैं — अणिमा महिमा चैव गरिमा लघिमा तथा प्राप्ति: प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धय: ((अमर कोश १.१.३६) इत्यमर: । अर्थात् अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशिता एवं वशिता —अमरकोष के अनुसार ये अष्टसिद्धियां हैं । कुल मिला कर श्लोक का भाव यह कि जगज्जयी रामनाम से चहुं ओर से संरक्षित राम रक्षा कवच अथवा स्तोत्र को जो मनुष्य मुँह जबानी याद रखता है व उपयोग में लाता है, सब सिद्धियाँ उसकी हथेली पर होती हैं ।
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