श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
श्लोक १७, १८, १९
Shloka 17, 18, 19![]()
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥
| तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ | ||
| तरुणौ | = | दो युवा |
| रूपसम्पन्नौ | → | रूप + सम्पन्नौ |
| रूप | = | सौन्दर्य |
| सम्पन्नौ | = | से युक्त |
| सुकुमारौ | = | सुकोमल, मृदु |
| महाबलौ | = | विपुल बलशाली |
| पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ | ||
| पुण्डरीकविशालाक्षौ | → | पुण्डरीक + विशाल + अक्षौ |
| पुण्डरीक | = | श्वेत कमल |
| विशाल | = | बड़ी-बड़ी |
| अक्षौ | = | आँखों वाले |
| चीरकृष्णाजिनाम्बरौ | → | चीर + कृष्ण + अजिन + अम्बरौ |
| चीर | = | वल्कल, पेड़ की छाल के वस्त्र |
| कृष्ण | = | काले |
| अजिन | = | मृगचर्म |
| अम्बरौ | = | वस्त्र, पोशाक, परिधान |
| फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । | ||
| फलमूलाशिनौ | → | फलमूल + आशिनौ |
| फलमूल | = | फल तथा मूल/कन्दमूल |
| आशिनौ | = | खाने वाले |
| दान्तौ | = | संयमी |
| तापसौ | = | तपस्वी |
| ब्रह्मचारिणौ | = | ब्रह्मचारी |
| पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ | ||
| पुत्रौ | = | बेटे |
| दशरथस्यैतो | → | दशरथस्य + एतौ |
| दशरथस्य | = | दशरथ के |
| एतौ | = | ये दो |
| भ्रातरौ | = | दोनों भाई |
| रामलक्ष्मणौ | = | राम और लक्ष्मण |
| शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । | ||
| शरण्यौ | = | शरण / रक्षा में कुशल |
| सर्वसत्त्वानाम् | → | सर्व + सत्त्वानाम् |
| सर्व | = | सभी |
| सत्त्वानाम् | = | प्राणियों की |
| श्रेष्ठौ | = | उत्तम |
| सर्वधनुष्मताम् | → | सर्व + धनुष्मताम् |
| सर्व | = | सभी |
| धनुष्मताम् | = | धनुर्धरों में |
| रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ | ||
| रक्ष:कुलनिहन्तारौ | → | रक्ष:कुल + निहन्तारौ |
| रक्ष:कुल | = | राक्षसों के कुल (का) |
| निहन्तारौ | = | नाश करने वाले |
| त्रायेताम् | = | रक्षा करें |
| नो = न: | = | हमारी |
| रघूत्तमो | → | रघु + उत्तमौ |
| रघु | = | रघुवंशियों में |
| उत्तमौ | = | श्रेष्ठ |
अन्वय
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ दशरथस्य पुत्रौ सर्वसत्त्वानाम् शरण्यौ
सर्वधनुष्मताम् श्रेष्ठौ रक्ष:कुलनिहन्तारौ रघूत्तमौ एतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ न: त्रायेताम् ।
भावार्थ
युवा, सौन्दर्यशाली, मृदुल, अतीव बलशाली, श्वेतकमल-से विशाल नेत्रों वाले, वल्कल वस्त्र व काली मृगछाला धारण किये हुए, फलमूल का आहार करने वाले, जितेन्द्रिय, तपस्वी,ब्रह्मचारी, सभी प्राणियों को शरण देने में दक्ष, समस्त धनुर्धारियों में सर्वोत्तम, राक्षसकुल का ध्वंस करने वाले दशरथ के दोनों पुत्र, रघुकुल-श्रेष्ठ राम लक्ष्मण हमारी रक्षा करें ।
व्याख्या
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के प्रस्तुत श्लोकत्रय (तीन श्लोक) पूरे अर्थबोध की दृष्टि से आपस में बड़ी कुशलता से जुड़े हुए हैं । प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण से की गई प्रार्थना का आलोक इन तीनों श्लोकों में किरण-किरण छिटका हुआ है । एतदर्थ इनको एक साथ लिया गया है ।| श्लोक १६ | अनुक्रमणिका | श्लोक २० |
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