महामृत्युंजय मंत्र

`महामृत्युंजय मन्त्र` ऋग्वेद के सातवें मण्डल के उनसठवें सूक्त का पहला मन्त्र है । इसमें वैदिक ऋषि त्रयम्बक देव से जीवन भर तन-मन से स्वस्थ रहते हुए अपनी पूर्ण आयु को सार्थकता से भोग लेने के बाद, मृत्यु आने पर तत्काल स्वाभाविक, अकष्टकर और पीड़ाविहीन मृत्यु की प्रार्थना करते हुए, मृत्युभय से सदा के लिए मुक्त होने की व रुद्रदेव के अमृत-पदों की, परमपद-प्राप्ति की अपनी वांछा को व्यक्त करता है ।
दो शब्द
व्याख्या

 

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